रिपोर्ट – आशुतोष तिवारी
रीवा. बांधवगढ़ के बाद जब रीवा को नई राजधानी बनाया गया, तो यहां भी किलों व महलों के निर्माण कराए गए. रीवा रियासत के राजाओं-महाराजाओं ने इन किलों के निर्माण में न सिर्फ बाहरी खूबसूरती का ध्यान रखा, बल्कि अंदरूनी दीवारों पर भी कोई कोर-कसर नहीं रखी. दीवारों की रंगाई-पुताई से लेकर इन पर शानदार नक्काशी, महल के अंदर साज-सजावट के लिए बेशकीमती वस्तुएं मंगवाई गईं. बड़े-बड़े कमरों और हॉल में रोशनी के लिए छतों पर भारी-भरकम झूमर लगाए गए. ये झूमर अमूमन विदेशों से मंगवाए जाते थे. खासकर बेल्जियम से झूमर मंगवाए जाते थे जिनमें कांच का बेहद खूबसूरत काम दिखता था. रीवा रियासत के राजाओं ने भी ऐसा ही एक झूमर बेल्जियम से मंगवाया था, जो आज बघेला म्यूजियम में इस रियासत के शाही इतिहास की गवाही देता है.
बघेला म्यूजियम में रखा यह झूमर 150 साल से ज्यादा पुराना है. इतिहासकार असद खान ने बताया कि उस समय इस झूमर की कीमत 50 हजार रुपए थी. यानी आज की तारीख में इस झूमर की कीमत करोड़ों में है. उन्होंने बताया कि बेल्जियम से तत्कालीन बंबई (अब मुंबई) तक यह झूमर हवाई जहाज से लाया गया था. वहां से रीवा तक इसे बैलगाड़ी और बग्घी के जरिए राजमहल तक लाया गया. चूंकि झूमर में कांच सबसे प्रमुख अवयव होता है, इसलिए रीवा लाते समय इसे रूई से पूरी तरह लपेटा गया था, ताकि किसी तरह का नुकसान न पहुंचे. रीवा लाने के बाद इसे यहीं के कारीगरों ने सेट किया और उसके बाद किले के अंदर लगाया गया.
हिंदुस्तान में अब ऐसे केवल 3 झूमर
इतिहासकार असद खान बताते हैं कि साल 1851 में रीवा के महाराजा विश्वनाथ सिंह ने अपनी रनावट महारानी के लिए रीवा में राघव महल का निर्माण कराया था. इसी महल की सुंदरता में चार चांद लगाने के लिए बेल्जियम से यह बेशकीमती झूमर मंगवाया गया था. यह झूमर लगभग 7 क्विंटल का है, जिसमें 101 बल्ब लगे हैं. झूमर में लगे सभी बल्ब अगर रोशन किए जाएं, तो बिल्कुल आंखों को चौंधिया देने वाला प्रकाश होता है. यही वजह है कि ऐसे झूमर बड़े दरबार हॉल या विशालकाय कमरों में लगाए जाते थे.
उन्होंने बताया कि इस विशाल झूमर के अलावा देश में कई और जगहों पर भी विशाल झूमर संजोकर रखे गए हैं. इनमें से अधिकांश ऐसे हैं जो आजादी के पहले खरीदे गए थे. इन झूमरों को मोमबत्ती से भी रोशन किया जाता था. लेकिन इस डिजाइन और शैली के झूमर हिंदुस्तान में अब केवल तीन बचे हैं. उन्होंने कहा कि ग्वालियर और मैसूर के अलावा सिर्फ रीवा में ही ऐसा झूमर देखा जा सकता है.
किले की सुंदरता में चार चांद लगाता है या झूमर
बघेला म्यूजियम में रखे हुए कई झूमर पहले वेंकट भवन में लगे हुए थे. लेकिन वहां से इन झूमरों को अब रीवा के बघेला म्यूजियम में लाकर रखा गया है. इतिहासकार असद खान के मुताबिक बेशकीमती और खूबसूरती में बेजोड़ इन झूमरों को महल और किले में लगाना राजाओं के लिए न सिर्फ शान-ओ-शोहरत का प्रतीक था, बल्कि इससे महलों की सुंदरता भी बढ़ जाती थी. उन्होंने बताया कि आज भी दशहरा के मौके पर जब गद्दी पूजा की जाती है, तो इस झूमर को जलाया जाता है.
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FIRST PUBLISHED : February 13, 2024, 12:29 IST